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लेखनी ग़ज़ल-21-Feb-2022

महसूस किया है तुझे देखा तो नहीं है

फूलों में कहीं तेरा ही जलवा तो नहीं है

हर बात निकलती है जु़बां से तेरी कड़वी
दांतों में तेरे नीम का पत्ता तो नहीं है

फिर किसने बिछाए हैं मेरी राह में कांटे
इस शहर में कोई मेरा अपना तो नहीं है

पर्दा सा पड़ा रहता है आईने पै हरदम
इसमें कहीं हालात का चेहरा तो नहीं है

फिर शेख़ ओ बिरहमन में चलीं अम्न की बातें
इक जंग का फिर और इरादा तो नहीं है

हर बात अदावत की भुला देते हो पल में
तुम में कोई मासूम सा बच्चा तो नहीं है

उसकी तो हर इक बात का दुश्मन है ज़माना
वो आदमी 'कौसर 'कहीं सच्चा तो नहीं है

 

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6 Comments

Arman

01-Mar-2022 11:37 AM

सुन्दर रचना

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Lotus🙂

25-Feb-2022 02:25 PM

Wah umda

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Seema Priyadarshini sahay

21-Feb-2022 05:05 PM

बहुत खूबसूरत

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Aein meem kausar

22-Feb-2022 01:20 PM

بہت بہت شکریہ آپ کا

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